Thursday, March 22, 2018

श्यामल परिचय

आचार्य श्री भागवत पाठक "श्यामल" संस्कृत और हिन्दी साहित्य के प्रखर विद्वान हैं। उन्होंने सैकड़ों अद्वितीय रचनाएं रची है लेकिन अर्थाभाव में बहुत प्रकाशित, प्रचारित नहीं हो सकी है। आकाशवाणी से प्रसारण होता रहा है। उनकी प्रमुख रचनाओं में "भारतीय काव्य में रासोद्भुति,बाल्मीकि का लोक शिक्षण,विश्वामित्र संहिता,अथ कोकदूतम, अयंग सँगतिः, सुरभारती, सुरवाणी,बौद्धिक क्रांति के युग मे भारत,साम्प्रदायिक एकता की तपोभूमि, भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन,खैनी महात्म्य,जिसकी रोटी उसकी भैंस,चमचागिरी मंत्रम,भृमरगीत,कृष्ण को देखा, कलंकित,श्रीमद्भागवत वचनामृत, उन्मुक्त तन्त्र, बिखरा गए,गिरिधर,अनायास,हड़ताल,मझधार में,विम्ब,मेरा परिचय जैसी अनगिनत काव्य और लेख शामिल है।
गिरिडीह के जमुआ प्रखण्ड अंतर्गत सुदूरवर्ती गांव बसखारो के निवासी श्यामल रांची,तिसरी, मिर्जागंज में अध्यापन कार्य करने बाद वर्ष 2009 में रामगढ़ उच्च विद्यालय से प्रभारी प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत होने के बाद बसखारो में बस गए हैं। अब भी अध्ययन में जुटे हुए हैं। उनकी पांडुलिपियों को संग्रहित कर प्रकाशन की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

पंकज प्रियम
18.3.2018

उन्मुक्त तन्त्र

उन्मुक्त-तन्त्र
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उन्मुक्त हुई, कविता वनिता
खोकर शृंखलता,संयमिता।
मदिरा से कर, मन विह्वल
देखे जिसने, वे नयन तरल।
रंजित अधरों में, हास लास्य
अंतर सुवास,रसच्युत श्वास।
दुग्धित संचित,अंतः लज्जित
प्रिय संस्पर्शन से रोमांचित।
दिल में नकभी होता विभाग
पाकर नूतन ,जीवन पराग।
स्वच्छन्द बनी ,अब छोड़ राग
खुद अपनाया ,जीवन विराग।
उन्मुक्त तन्त्र का यह विलास
देखा विनाश में ही विकास।
अवरोध हीन आमरण बिना
अपजात गात्र सरसे कितना।
कहां? सुलभ वह मादकता
केवल यह उच्छलन भावुकता।
उन्छित संयम, में ही उपचय
कैसा? यह जीवन अप संसय!
सुंदरता, का होता अपचय
उपयुक्त नहीं जिसका संश्रय।
✍भागवत पाठक"श्यामल"