Saturday, October 27, 2018

हालात क्या है यहाँ

परम् पूज्य हे परमपिता,हमें जो भेजा तूने यहाँ
हालात जो फिलहाल है, करता हूँ उसको बयाँ।

नाम के लिए भी होते हैं बड़े काम यहाँ
काम करनेवाले भी होते हैं बदनाम यहाँ।
सुबह होता ठंडा तो गर्म होती शाम यहाँ
देशी बना विदेशी जैसा छलकता जाम यहाँ।

बारूद के धुएं में दिखती है दीवाली यहाँ
लगता है निकल गया दिमाग का दिवाला यहाँ
बाला यहाँ, हाला यहाँ,बिकता है ताला यहाँ
कभी-कभी मेला,अक्सर होता है रेला यहाँ
भूत भी फेंकते है घरों में रात को ढेला यहाँ।

खेतों में उपज रही ऊंची अटारियाँ
हरजगह थिरकती अधनंगी नारियाँ।
बेरोजगारी का हल्ला है,चोरबाजारी का गल्ला है
पढ़े लिखे बाप का भी बेटा पड़ा निठल्ला है।

फौलादी पँखो से उड़ते है लोग यहाँ
बारूदी सुरंगों में पड़ते हैं जहां तहां।
अलग बोलियों का दिखता मेल यहाँ
रोज हड़ताली भरते हैं अब जेल यहाँ।

साल 6 महीने में बदलती सरकार यहाँ
बातों ही बातों में निकलती तलवार यहाँ
चारो तरफ है फैला विद्युत का तार यहां
हर जगह है कचड़ों का लगा अम्बार यहाँ।

लूट जाते खड़े राहगीर सरेआम यहाँ
शासन के सिपाहा करते परेशान यहाँ
बड़े अक्खड़ लहराते पियक्कड़
शानदार जानदार छलकाते हैं जाम यहाँ।

हर तरफ सूखा है,आदमी सब भूखा है यहाँ
मौज में बैठा है भैंसा पड़ा पगुराता है यहाँ
यहाँ वहाँ सब दौड़ रहा,मानो कुछ जोड़ रहा
दूसरों को देख देखकर कुत्ता भौंकता है यहाँ।

अधखुलती सुंदरियां कागज में भोग यहाँ
नुक्कड़ में जाने पर झल्लाते हैं लोग यहाँ
गीत नहीं गाते, बस चिल्लाते है लोग यहाँ
मानो कुछ पाने को भाग रहे हैं लोग यहाँ।

अरसे से मिला नहीं कोई पहचाना यहाँ
बुझे फानूस सा लटका हिंदी जमाना यहां।
बहकते बवाल में बड़े बड़े भांड यहां
काटने को कुत्ते,धकियाने को सांढ़ यहाँ।

भावना के भूत रोते, जार जार यहाँ
मुरादों के सपने होते ,तार तार यहाँ।
मच्छर ही करते रात की मनुहार यहाँ
लटक सा गया, जीवन का प्यार यहां।

पानी के लिए होते सब हैं बेपानी यहाँ
पानी के लिए कुछ होते पानी-पानी यहाँ.
घर घर मे नेता है,घर में नाता पुराना यहां
चंदे के धंधे मर इबादत का बहाना यहाँ।

मयखाना यहाँ, बुतखाना यहाँ,हर जगह पैखाना यहाँ
खाना खराब होता,कदम कदम पे है दवाखाना यहाँ।
करिश्माई कुछ भी नहीं,बिल्कुल पुराना यहाँ

नया कुछ करना चाहा तो फटा पैजामा यहाँ
खम ठोक बैठे जो नया करतब दिखाने को
देखते ही देखते उखड़ गया शामियाना यहाँ।
कुछ भीतरी बाहरी का गूंजता अफसाना यहां।

बरसात के आगाज में कुछ मंजर पसरता यहाँ
सड़कें तो बहाना है,नदियों का सब मुहाना यहां।
जंगल ही जंगल है खुदाई वो लोगों की लगाई ही
घिरा है जमींदोज भूतों का तहखाना यहाँ
औरतों की बानगी में दिखता मरदाना यहाँ।

सैकड़ों शैतान बड़े बेईमान,पेटू पहलवान यहाँ
पूछे धनवान इंसान बनाने का कारखाना यहां
हुनर बदनाम यहाँ है ,काफी तामझाम यहाँ
तूती छिप बैठी है,देखके नक्कार खाना यहाँ।

©भागवत पाठक"श्यामल"

Thursday, March 22, 2018

श्यामल परिचय

आचार्य श्री भागवत पाठक "श्यामल" संस्कृत और हिन्दी साहित्य के प्रखर विद्वान हैं। उन्होंने सैकड़ों अद्वितीय रचनाएं रची है लेकिन अर्थाभाव में बहुत प्रकाशित, प्रचारित नहीं हो सकी है। आकाशवाणी से प्रसारण होता रहा है। उनकी प्रमुख रचनाओं में "भारतीय काव्य में रासोद्भुति,बाल्मीकि का लोक शिक्षण,विश्वामित्र संहिता,अथ कोकदूतम, अयंग सँगतिः, सुरभारती, सुरवाणी,बौद्धिक क्रांति के युग मे भारत,साम्प्रदायिक एकता की तपोभूमि, भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन,खैनी महात्म्य,जिसकी रोटी उसकी भैंस,चमचागिरी मंत्रम,भृमरगीत,कृष्ण को देखा, कलंकित,श्रीमद्भागवत वचनामृत, उन्मुक्त तन्त्र, बिखरा गए,गिरिधर,अनायास,हड़ताल,मझधार में,विम्ब,मेरा परिचय जैसी अनगिनत काव्य और लेख शामिल है।
गिरिडीह के जमुआ प्रखण्ड अंतर्गत सुदूरवर्ती गांव बसखारो के निवासी श्यामल रांची,तिसरी, मिर्जागंज में अध्यापन कार्य करने बाद वर्ष 2009 में रामगढ़ उच्च विद्यालय से प्रभारी प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत होने के बाद बसखारो में बस गए हैं। अब भी अध्ययन में जुटे हुए हैं। उनकी पांडुलिपियों को संग्रहित कर प्रकाशन की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

पंकज प्रियम
18.3.2018

उन्मुक्त तन्त्र

उन्मुक्त-तन्त्र
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उन्मुक्त हुई, कविता वनिता
खोकर शृंखलता,संयमिता।
मदिरा से कर, मन विह्वल
देखे जिसने, वे नयन तरल।
रंजित अधरों में, हास लास्य
अंतर सुवास,रसच्युत श्वास।
दुग्धित संचित,अंतः लज्जित
प्रिय संस्पर्शन से रोमांचित।
दिल में नकभी होता विभाग
पाकर नूतन ,जीवन पराग।
स्वच्छन्द बनी ,अब छोड़ राग
खुद अपनाया ,जीवन विराग।
उन्मुक्त तन्त्र का यह विलास
देखा विनाश में ही विकास।
अवरोध हीन आमरण बिना
अपजात गात्र सरसे कितना।
कहां? सुलभ वह मादकता
केवल यह उच्छलन भावुकता।
उन्छित संयम, में ही उपचय
कैसा? यह जीवन अप संसय!
सुंदरता, का होता अपचय
उपयुक्त नहीं जिसका संश्रय।
✍भागवत पाठक"श्यामल"